नमस्कार साथियों आशा है आप सभी अच्छे होंगे... अभी तक हम
भूतों का तांडव
- एक अनुभव पार्ट-1 व भूतों का तांडव - एक अनुभव पार्ट-2 में “करीब
रात के 3:00 बजे एकाएक मेरी नींद झटके से खुल गई, मुझे लगा कि कोई मेरी खटिया के
सामने खड़ा होकर मुझे घूरे जा रहा है... और मैं चाह कर भी कुछ बोल नहीं पा रहा
हूँ... छटपटाहट में मैंने इधर-उधर हाथ-पैर मारे... इस हलचल से फलाने उठ गया.....” तक आज चुके
हैं. अब आगे....
झट से मेरी खटिया के पास आकार मुझे जोर से झटका.... तब जाकर मेरे मूंह से आवाज निकली... उसने पूंछा क्या हुआ था तुमको..? मैंने कहा कि जब रात में हम सभी खाना खाने के बाद अपनी-अपनी खटिया पर बैठकर बातें कर रहे थे....
तो उधर (इशारा करते हुए) जहाँ गुप्प अंधेरा है... वहां से कोई मुझे
घूर रहा था... उस समय मैंने सोचा शायद मेरा कोई वहम है या ऐसे ही कुछ; थकान के
कारण आँखें चौंधिया रही हैं.....
तो फलाने ने कहा कि तू मुझे तो बता ही
सकता था... तुम सबको मैंने पहले ही बताया था कि मेरा गाँव कैसा है और यहां पर क्या
होता है...? खैर.... अभी क्या हुआ था...? तो मैंने बताया कि वही जो उस समय मुझे
घूर रहा था, वही मेरी खटिया के सामने खड़ा था... बस उसका चेहरा साफ-साफ समझ में
नहीं आ रहा था... और जैसे ही तुमने मुझे झटका... पता नहीं कहां चला गया.... अभी तो
कहीं भी दिख ही नहीं रहा है...

मेरी यह बात और हालत देखकर फलाने कहने लगा
कि तू डर गया है... फिर उसने अपनी जेब से एक छोटा सा लोहे का चाकू निकाला और मुझे
देते हुए कहा कि अब से ये चाकू अपने से कभी दूर मत रखना. मैंने चाकू लिया और अपनी
खटिया पर फिर से लेट गया... थोड़ी देर बाद सवेरा हो गया.... गाँव के लोगों ने
सुबह-सुबह अपने काम करने शुरू कर दिए.... बाकी के दोस्त भी उठ गए...
उठकर बोले क्या नींद आई थी आज... इनको पता
ही नहीं कि मेरे साथ क्या हुआ...? और मैंने बताना भी सही नहीं समझा... क्योंकि हो
सकता था ये लोग मेरी आप बीती जानकर डर जायें.... खैर... उठने के थोड़ी देर बाद
फलाने आया और पूंछने लगा कि टॉयलेट जाना है तो खेत पर चलना होगा.... हमने कहा कि
कितनी दूर जाना होगा...? फलाने- गाँव के बाहर तक जाना होगा... करीब 15 मिनट में
पहुच जाएंगे.....
अब टॉयलेट ऐसी प्रक्रिया है जिसे करना तो
जरूरी ही है... नहीं तो बेज्जती हो जाएगी.... हम लोगों ने कहा ठीक है... चलो....
हम सब हाथ में लोटा लेकर चल दिए.... जब उस जगह पर पहुचे जहां टॉयलेट करनी थी, वहां
से थोड़ी दूर (करीब 10 कदम) पर एक बहुत बड़ा पेड़ लगा था.... फलाने ने बताया कि उस
पेड़ की छाँव को छोड़कर कहीं भी टॉयलेट कर सकते हो....
जहां हमें टॉयलेट करनी थी वहां झुरमुट
झाड़ियाँ भी लगी थीं.... हम सबने एक-एक झाड़ी को ओट बनाकर उसके पीछे बैठ गए और अपना
प्रोग्राम चालू कर दिया.... जब मैं टॉयलेट कर रहा था तो फिर से मुझे कुछ महसूस हुआ
कि वही साया दूर खड़े होकर फिर मुझे घूरे जा रहा है.... लेकिन मेरे पास नहीं आया...
इसका कारण यह था कि मेरे पास फलाने का दिया हुआ चाकू था....
अब मुझे लग रहा था कि जरूर मैंने कोई पाप
किया है.... जिस कारण ये मेरे ही पीछे पड़ा है... जल्दी-जल्दी में मैंने मैदान
निपटान किया.... और वहां से उठकर तेज क़दमों से अपने दोस्तों की तरफ जाने लगा....
जैसे-जैसे मैं दोस्तों की तरफ जा रहा था... वैसे-वैसे वो साया मेरी ओर बढ़ रहा
था....
मुझे घबराहट हो रही थी... तो मैंने सोचा
अगर मैं रुक जाऊं तो शायद वो भी रुक जाए... यही सोचकर मैं एक दम से रुक गया....
देखा वो साया भी वहीं रुक गया है... मेरी जान में जान आई... लेकिन मैं जहां रुका
था... उस जगह पर पेड़ की छाया थी.... एकाएक मुझे महसूस हुआ कि कोई मुझे थप्पड़ मारकर
गया है....
क्योंकि जिस पेड़ के नीचे मैं खड़ा था,
फलाने ने बताया था वह एक पूजनीय पेड़ है और वहां महीने में एक बार सभी गाँव वाले
पूजा करते थे.... और मैं वहां शौच अवस्था में खड़ा था.... जिस कारण मुझे थप्पड़ पड़े
थे.... यह सब घटनायें अब मेरी समझ के बाहर होती जा रही थीं. जैसे ही थप्पड़ पड़े मैं
वहां से दूर भागा.... पीछे मुड़कर देखा वो साया गायब हो चुका था....

इतने में बाकी सब टॉयलेट करके आ चुके
थे... मैंने फलाने को बताया कि मेरे साथ क्या-क्या हुआ था.... फलाने मेरी बात
सुनकर थोडा सा चौंका.... और मुझसे कहा.... चलो अभी यहाँ से घर पर बात करते हैं....
हम घर की तरफ चल दिए.... नहा-धोकर/साफ और स्वच्छ होकर फलाने ने मुझसे पूंछा... अब
हर एक बात बताओ... तो मैंने कहा पूरी बात बता तो दी थी... उसने अपने चाचा को
बुलाया... और फिर मुझसे कहा कि अब सारी बात चाचा को बताओ....
मैंने अपनी आपबीती चाचा को सुनाई..
उन्होंने बाकी दोनों दोस्तों से भी पूंछा कि उनके साथ भी कुछ ऐसा हुआ है...? वे
बोले फ़िलहाल हमारे साथ तो ऐसा कुछ नहीं हुआ है अभी तक..... चाचा ने कहा कि तुम
लोगों को भुन्नी बाबा से मिलवाना पड़ेगा.... चलो देखें वो क्या बताते हैं... अमूमन
लगभग सभी गाँव में एक ओझा या झाड-फूंक करने वाले जरूर होते हैं.... जो ये दावा
करते हैं कि वे उपरी शक्तियों को कंट्रोल कर गाँव वालों की रक्षा कर सकते
हैं.....खैर...
चाचा के कहने पर हम सभी उन बाबा के यहाँ
गए... उनकी चौखट पर जैसे ही मैंने पैर रखा मैं चक्कर खाकर बोहोश हो गया... उसके
बाद जब मुझे होश आया... मैंने अपने आपको बाबा के सामने लेटा हुआ पाया और बाबा शायद
कोई क्रिया कर रहे थे मेरे ऊपर... बक्कू (दोस्त का बदला हुआ नाम) ने बताया कि जब
तू बेहोश था तब बाबा ने तुझे कोड़े से मारा था.... तुझे महसूस नहीं हुआ....? मैंने
कहा नहीं... मुझे कुछ भी नहीं महसूस हुआ....
जैसे ही मैं उठने लगा बाबा की आँखे खुली
और उन्होंने मुझे देखा .... जैसे ही उन्होंने मुझे देखा मुझे एक जोर का झटका
लगा... लगा जैसे वो मेरी तरफ बहुत साडी ऊर्जा भेज रहे हों... और मुझसे वो ऊर्जा
संभाले नहीं संभल रही.... इस घटना ने मुझे पूरी तरह से झकझोर दिया... मेरा समझने
का नजरिया ही बदल गया... जो आज भी कायम है....
इसके बाद बाबा कहने लगे... मैं तुमको एक
ताबीज देतां हूँ... कुछ भी हो जाये इसे अपने शरीर से बिल्कुल भी अलग नहीं करना....
मैंने हां में सर हिला दिया.... उसके बाद उन्होंने कहा कि 03 दिन बाद फिर से मिलने
आना... हम लोग उठे और चल दिए... अब तक मेरा बहुत सारा अहम टूट चूका था... महसूस हो
रहा था कि जैसे मेरा नया जन्म हुआ हो... मेरी सीखने की क्षमता और चीजो को परखने की
क्षमता में नाटकीय रूप से परिवर्तन (बढ़) आ चुका था...
बाबा ने सख्त हिदायत दी थी कि मुझे जब तक
जरूरी न हो घर से बाहर नहीं निकलना है... और जब भी बहार जाना किसी के साथ ही
जाना... अगले दिन सुबह जब हम लोग फिर से टॉयलेट के लिए निकले तो मेरे साथ वो कुछ
नहीं हुआ जो पिछले दिन हुआ था... पर इस बार बक्कू के साथ वही सब घटा... वो बहुत
ज्यादा डर चूका था... उसे भी बाबा के पास ले जाया गया.... उसके साथ भी वही किया
गया... जो मेरे साथ किया गया था....
हम लोग अब तक पूरी तरह से सहम चुके थे...
अब बारी थी तीसरे दोस्त की हमें लगा कि उसके साथ भी ऐसा ही कुछ होने वाला है...
लेकिंग उसके साथ ऐसा कुछ घटा ही नहीं.... तीसरे दिन मुझे बाबा के यहाँ फिर से जाना
था... तो हम लोग चाचा को साथ लेकर बाबा के यहाँ गए... बाबा ने मुझे देखकर कहा कि
अब इस पर खतरा टल चूका है... लेकिन हिदायत के तौर पर गाँव में घूमना नहीं है....
जब हम लौट रहे थे तो रास्ते से कुछ दूरी
पर एक आम की बाग़ पड़ती थी, जिसमें आम भी लगे थे, जो हममें लालच को जागा रहे थे....
अन्नू (तीसरा दोस्त) ने कहा कि फलाने वो आम की बाग़ किसी है... क्या हम वहां जाकर
आम खा सटे हैं...? फलाने ने कहा कि वो गाँव की ही है... अगर चलना है तो ले चलता
हूँ... मैंने और बक्कू ने जाने से इंकार कर दिया... क्योंकि बाबा ने घूमने के लिए
माना किया था...
इस पर अन्नू बोला तो तुम लोग घर चले जाओ
और मैं और फलाने आम खाकर आते हैं.... हम दोनों चाचा के साथ घर पर आ गए... और
अन्नू, फलाने बाग़ की ओर चले गए.... हम लोग घर आकार खाना पीना खाकर आराम कर रहे
थे... आराम करते-करते 03 से 04 घंटे बीत चुके थे लेकिन अभी तक न फलाने आया था और न
ही अन्नू. हमें चिंता सताने लगी... मैंने बक्कू से कहा कि यार! ये लोग अभी तक आये
नहीं हैं... कहीं कुछ हो तो नहीं गया....?
बक्कू ने भी चिंता जताते हुए कहा, चलो
चाचा जी से कहते हैं... हम लोग चाचा जी के पास गए... वे उस समय चारा काट रहे थे...
देखकर बोले क्या हुआ...? मैंने कहा कि अन्नू और फलाने अभी तक आये नहीं हैं.... जरा
देखिये कुछ हो तो नहीं गया.... ये सुनकर चाचा ने कहा कि ठीक है मैं जाकर पता करता
हूँ....
चाचा बाग़ की और चल दिए... वहां जाकर देखा
कि दोनों लोग बेहोश पड़े हैं.... इतने में गाँव में हल्ला हो गया कि मितरन बाग़ में
दो लोग बेहोश पड़े हैं.... यह खबर बाबा और हम तक भी पहुच चुकी थी.... हम सोचने लगे
कि कहीं जिस बाग़ का जिक्र हो रहा है ये वही बाग़ तो नहीं है जहाँ हमारे दोस्त गए
थे...
चूंकि हमें घर से निकलने पर पाबंदी थी...
इसलिए हम चाह कर भी निकल नहीं सकते थे... थोड़ी देर बाद पता चला कि ये वही बाग़ थी,
जहाँ हमारे दोस्त आम खाने गए थे.... लोगों ने बताया कि भुन्नी बाबा ने दोनों को
बचा लिया है और अपने साथ अपने दरबार में ले गए हैं...
इतने में चाचा दौड़कर आये और हमसे कहने लगे
चलो बाबा के यहाँ उन्होंने बुलाया है.... हम भी उनकी बात सुनकर चल दिए... जैसे ही
हम वहां पहुचे... देखते हैं कि बाबा के सामने फलाने और अन्नू दोनों लेटे हुए
हैं... और बाबा कोई तांत्रिक क्रिया कर रहे हैं... यह सब देखकर मैं और बक्कू बहुत
ज्यादा डर चुके थे... अब हमको विश्वास हो चुका था कि ऊपरी बाधा जैसी भी कोई
चीज होती है...
हालाँकि मुझमें कुछ नई क्षमताओं का विकास
हो चुका था... जिसके कारण मुझमें कई सवाल पनपने लगे थे... मैं डर से ज्यादा अपने
सवालों से भयभीत था... हिम्मत करके मैंने बाबा से कहा कि "बाबा अगर आप बुरा न
माने तो मैं आपसे कुछ पूँछ सकता हूँ....?" उन्होंने जैसे ही मेरी तरफ नजरे
घुमाई मुझे फिर से तगड़ी ऊर्जा का एहसास हुआ... इसी चीज को जानने की इच्छा
ही मेरे अन्दर तीव्रता से पनप चुकी थी... और मैं बस इसी को जानना चाहता था... खैर...
बाबा ने कहा जो तुम जानना चाहते हो उसके
लिए अभी तुम पात्र नहीं हो.... जब पात्र हो जाओगे... प्रकृति खुद तुम्हे... इसका
रहस्य बता देगी.... तब तक सात्विकता से अपना जीवन जीने की कोशिश करो.... इसके बाद
वे कुछ नहीं बोले.... और मुझमें भी हिम्मत नहीं थी कि मैं कुछ और पूंछू...
इतने में दोनों को होश आ गया... लगा कि
दोनों में भरपूर ऊर्जा प्रवाहित हो रही है... एकाएक अन्नू बेढंगे स्वर में बाबा से
बोला कि तू चाहे कुछ भी कर ले.... इनको सजा मिलकर ही रहेगी.... इन दोनों ने मेरे
घर को बिखेरा है... इतनी कठोर आवाज ने मेरे रोंगटे खड़े कर दिए... मैं और बक्कू डर के मारे काँप रहे थे....
लगा जैसे अन्नू के अन्दर से कोई और बोल
रहा है.... फिर बाबा ने कहा "तेरे नुकसान की भरपाई कर दी जाएगी बस तू इन
बच्चों को मुक्त कर... अन्नू बोला नहीं... सजा तो
मैं देकर कर ही रहूँगा... इतने में बाबा की आँखे लाल हो चुकी थीं... बाबा ने राख
उठाकर अन्नू के सर पर “फट स्वाहा” करके फेंका.... जैसे ही राख पड़ी अन्नू कांपने
लगा और थोड़ी देर बाढ़ बेहोश हो गया...
यह सब देखकर हम शहर वाले दोनों डर और सहम
गए... बाबा ने मेरी ओर देखा और कहा कि यदि तुम पात्र होते तो तुम्हे भय नहीं
लगता... खैर बाबा ने कई प्रक्रियाएं की अन्नू के ऊपर और जब अन्नू होश में आया तो
ठीक था. बाबा ने कहा अब तुम लोग गाँव में घूमने के लिये अकेले नहीं जा सकते... जब
भी जाना हो किसी के साथ ही जाना....
डिस्क्लेमर-
मैंने
अपने इस अनुभव को कहानी का स्वरुप देने की कोशिश की है ताकि पाठक गण को पढने में
आनंद और वो महसूस हो सके जो मैंने महसूस किया था. इस अनुभव में स्थान/जगह व
सम्बंधित व्यक्तियों के नामों को सुरक्षा हित की दृष्टि से बदल दिया गया है.
इसके
साथ यह अनुभव कई पार्ट में प्रकाशित किया जायेगा. इस अनुभव लेख में उल्लिखित की गई
सभी सामग्री Copyrighted है. जिसका किसी अन्य के द्वारा
commercial तौर पर उपयोग किये जाने पर सख्त कार्यवाही की
जाएगी.
अगले दिन शायद शनिवार था... और हम लोग घर
पर बैठे-बैठे बोर हो रहे थे... इतने में बक्कू ने कहा कि चलो आज फलाने के खेत पर
चलते हैं... अब हममें से केवल बक्कू ही बचा था जिस पर अभी तक कोई विपदा नहीं आई
थी... इसलिए बक्कू को अब लग रहा था कि हम लोगों से ख़ास है...
मैंने और अन्नू ने जाने से इंकार कर
दिया... पर फलाने फंस गया... क्योंकि यह उसका गाँव था और उसे अपने खेतों पर भी
जाना था... बक्कू ने कहा कि तू क्यों डरता है देख मेरे पास हनुमान चालीसा की किताब
भी है... मजबूरी में फलाने बक्कू को ले जाने के लिए राजी हुआ.... इसके बाद दोनों
लोग खेत की ओर निकल गए...
भूतों का तांडव - एक अनुभव के पार्ट-3 में
इतना ही. आशा है आपको पहला और दूसरा पार्ट रोचक जरूर लगा होगा. जल्द ही हम इसका
अगला पार्ट अपलोड कर देंगे... अपलोड की नोटिफिकेशन पाने के लिए वेबसाइट को subscribe करना न भूलें.. इसके साथ ही यदि आप कोई प्रतिक्रिया
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धन्यवाद!
जय हिंद! जय भारत!
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